गुरुवार, 26 जून 2008

सिगरेट के धुएं में धुंधलाता बचपन

'हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया..' ये पंक्तियां गाने के रूप में सुनने में भले ही अच्छी लगती हों, लेकिन स्वास्थ्य के लिए यही धुआं जानलेवा है और यदि बचपन भी इस धुएं की चपेट में आ जाए तो हालात खतरनाक संकेत देते हैं। आज शहर की सड़कों पर खुलेआम 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे सिगरेट का धुआं उड़ा रहे हैं। प्रतिबंधित होने के बावजूद बच्चों को आसानी से सिगरेट, बीड़ी व पान-मसाला उपलब्ध हो रहा है। 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को सिगरेट पान-मसाला देना प्रतिबंधित है।' ये लाइनें पान-बीड़ी की दुकान, खोखे व सार्वजनिक स्थानों पर लिखी हुई दिखाई देती हैं। शासनादेश भी यही कहता है, लेकिन इनका पालन कहीं नहीं हो रहा। विक्रेता बिना किसी सरोकार के महज अपने जरा से लाभ के लिए बच्चों को सिगरेट, गुटका, पान-मसाला आसानी से बेच रहे हैं। नई पीढ़ी नशे के इस जाल में फंसकर अपने जीवन के मूल उद्देश्य से भटक रही है। इस नशे के आदी हो चुके बच्चे धीरे-धीरे परिवार व समाज से कटते जा रहे हैं। उनका सामाजिक और व्यवहारिक ज्ञान से कोई सरोकार नहीं है।
ऐसे नाबालिगों की बहुत बड़ी जमात बस स्टैंड और पार्को में देखने को मिल जाती है। कई तो इस नशे की दुनिया में इतना आगे निकल चुके हैं कि गुटका व सिगरेट तो महज उनके लिए मामूली नशा है। यदि दिन में एक-आध बार व्हाइट फ्ल्यूड, आयोडेक्स आदि का नशा न कर लें, तो उनकी आंखें ही नहीं खुलतीं। कई तो अपने पूरे बदन पर तेजाब मलकर नशे की तलब को दूर करते हैं। ऐसे कई वाकये प्राइवेट स्कूलों में भी देखने को मिले हैं, जब बच्चों के रुमाल में व्हाइट फ्ल्यूड व आयोडेक्स लगी हुई मिली हैं। कई बार तो बच्चे पुलिस व प्रशासनिक कार्यालयों के सामने ही सिगरेट को धुएं में बदलते दिखाई देते हैं, लेकिन इनको रोकने या समझाने के लिए कोई तैयार नहीं है। नाबालिगों को नशे की इस गर्त में धकेलने के लिए परिवार की अनदेखी सबसे बड़ा कारण है। बच्चों से नशे का सामान मंगवाना और बच्चों के सामने इसका सेवन करना बच्चों पर काफी बुरा प्रभाव डालता है।