आजाद भारत के इतिहास में सबसे पहले मतदान करने वाले हिमाचल प्रदेश के चिन्नी तहसील के गांववासी थे जिन्हें देश में जनवरी-फरवरी 1952 को हुए आम चुनाव से तीन महीने पहले ही वोट डालने का अवसर मिल गया था।
हिमाचल प्रदेश की इस तहसील में 23 अक्टूबर 1951 को वोट डाले गए थे क्योंकि इसके बाद यह घाटी सर्दियों की बर्फबारी के कारण शेष दुनिया से कट जाने वाली थी। चिन्नी तहसील के गांवों का नाता तिब्बत के पंचेम लामा से था और वे स्थानीय पुरोहितों के रीति रिवाजों के हिसाब से जीवन बिता रहे थे। चुनाव रिकार्डो से यह भी पता चलता है कि चिन्नी के ग्रामीणों ने इस मतदान को उत्सव की तरह मनाया था। वे नए घर के निर्माण पर होने वाले रिवाज गोरासांग, बौद्ध पुस्तकालयों के भ्रमण के उत्सव कांगुर जाल्मो, महिलाओं और बच्चों के पर्वतचोटियों पर चढ़ने के उत्सव मेंथाको और रिश्तेदारों के आपस में एक-दूसरे के यहां जाने के रिवाज जोखिया चुग सिमिग की तरह ही मतदान का पर्व मना रहे थे। इसके बाद उनके जीवन में हर पांच साल में आने वाला यह पर्व भी जुड़ गया।
सन् 1952 के चुनावों की रिपोर्टो से यह भी पता चला है कि पहले आम चुनाव में जनता और राजनीतिज्ञ दोनों ने ही अमन और कानून के पालन की प्रवृत्ति का परिचय दिया था। इस बात को तत्कालीन मुख्य
निर्वाचन आयुक्त ने दर्ज भी किया था। पहले आम चुनाव में मतदान प्रक्रिया से जुड़े 1250 मामले सामने आए थे और इनमें भी 100 मामले ऐसे थे जिनमें मतदान बूथ के आसपास प्रचार करने के दिलचस्प केस थे। इन मामलों में गायों पर चुनाव चिन्ह पेंट कर उन्हें मतदान केंद्रों के आसपास छोड़ दिया गया था। इस आम चुनाव में फर्जी मतदान के 817 मामले तथा मतपत्र बाहर लेकर 106 मामले सामने आए थे। इतिहासकार रामचंद्र गुहा की पुस्तक इंडिया आफ्टर गांधी में दर्ज है कि फरवरी 1952 के आखिरी सप्ताह में चुनाव नतीजा आया तो कांग्रेस ने 489 संसदीय सीटों में से 364 सीटें जीत लीं और राज्य विधानसभाओं की 3280 सीटों में से 2247 सीटों पर विजय हासिल की। इस चुनाव में सबसे बडी पराजय संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर की थी जिन्हें बुंबई निर्वाचन क्षेत्र में एक अनजाने से दुधिये काजरोलकर ने हरा दिया। इस पुस्तक के अनुसार सबसे अधिक वोटों से जीत एक कम्युनिस्ट रवि नारायण रेड्डी ने दर्ज की थी जिन्होंने व्हिस्की का पहला गिलास अपने चुनाव प्रचार के दौरान पिया था। उन्होंने पंडित नेहरू से भी बड़ी जीत हासिल की थी।
हिमाचल प्रदेश की इस तहसील में 23 अक्टूबर 1951 को वोट डाले गए थे क्योंकि इसके बाद यह घाटी सर्दियों की बर्फबारी के कारण शेष दुनिया से कट जाने वाली थी। चिन्नी तहसील के गांवों का नाता तिब्बत के पंचेम लामा से था और वे स्थानीय पुरोहितों के रीति रिवाजों के हिसाब से जीवन बिता रहे थे। चुनाव रिकार्डो से यह भी पता चलता है कि चिन्नी के ग्रामीणों ने इस मतदान को उत्सव की तरह मनाया था। वे नए घर के निर्माण पर होने वाले रिवाज गोरासांग, बौद्ध पुस्तकालयों के भ्रमण के उत्सव कांगुर जाल्मो, महिलाओं और बच्चों के पर्वतचोटियों पर चढ़ने के उत्सव मेंथाको और रिश्तेदारों के आपस में एक-दूसरे के यहां जाने के रिवाज जोखिया चुग सिमिग की तरह ही मतदान का पर्व मना रहे थे। इसके बाद उनके जीवन में हर पांच साल में आने वाला यह पर्व भी जुड़ गया।
सन् 1952 के चुनावों की रिपोर्टो से यह भी पता चला है कि पहले आम चुनाव में जनता और राजनीतिज्ञ दोनों ने ही अमन और कानून के पालन की प्रवृत्ति का परिचय दिया था। इस बात को तत्कालीन मुख्य
निर्वाचन आयुक्त ने दर्ज भी किया था। पहले आम चुनाव में मतदान प्रक्रिया से जुड़े 1250 मामले सामने आए थे और इनमें भी 100 मामले ऐसे थे जिनमें मतदान बूथ के आसपास प्रचार करने के दिलचस्प केस थे। इन मामलों में गायों पर चुनाव चिन्ह पेंट कर उन्हें मतदान केंद्रों के आसपास छोड़ दिया गया था। इस आम चुनाव में फर्जी मतदान के 817 मामले तथा मतपत्र बाहर लेकर 106 मामले सामने आए थे। इतिहासकार रामचंद्र गुहा की पुस्तक इंडिया आफ्टर गांधी में दर्ज है कि फरवरी 1952 के आखिरी सप्ताह में चुनाव नतीजा आया तो कांग्रेस ने 489 संसदीय सीटों में से 364 सीटें जीत लीं और राज्य विधानसभाओं की 3280 सीटों में से 2247 सीटों पर विजय हासिल की। इस चुनाव में सबसे बडी पराजय संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर की थी जिन्हें बुंबई निर्वाचन क्षेत्र में एक अनजाने से दुधिये काजरोलकर ने हरा दिया। इस पुस्तक के अनुसार सबसे अधिक वोटों से जीत एक कम्युनिस्ट रवि नारायण रेड्डी ने दर्ज की थी जिन्होंने व्हिस्की का पहला गिलास अपने चुनाव प्रचार के दौरान पिया था। उन्होंने पंडित नेहरू से भी बड़ी जीत हासिल की थी।