हिंदुस्तानी फिल्मों के हरफनमौला सितारे किशोर कुमार की जिंदादिली और खिलंदड़पन के किस्सों की कोई कमी नहीं है। मगर यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि वह इंदौर में राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान लेने के लिए हवाई अड्डे से समारोह स्थल तक बैलगाड़ी पर सवार होकर आना चाहते थे।
मशहूर फिल्म समीक्षक श्रीराम ताम्रकर ने बताया, यह वर्ष 1985-86 का वाकया है। किशोर की इच्छा थी कि उन्हें शहर के हवाई अड्डे से समारोह स्थल तक बैलगाड़ी की सवारी से लाया जाए, जहां उन्हें मध्यप्रदेश सरकार का प्रतिष्ठित राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान दिया जाना था। लेकिन ऐसा हो न सका। उन्होंने बताया कि तत्कालीन प्रशासन ने सुरक्षा कारणों के चलते किशोर को बैलगाड़ी की सवारी कराने में असमर्थता जताई। दूसरे, कुछ अधिकारियों को डर था कि बॉलीवुड की मशहूर हस्ती की एक झलक पाने के लिए उमड़ने वाली भीड़ के बेकाबू होने पर बैल बिदक भी सकते थे। बहरहाल, किशोर तो किशोर थे। उन्होंने बैलगाड़ी से समारोह स्थल तक न आने की टीस मंच पर अपने चुटीले अंदाज में बयान भी की। समारोह में बतौर दर्शक शामिल ताम्रकर के मुताबिक, किशोर ने मंच से कहा कि वह पुरस्कार लेने के लिए बैलक्षमता वाली गाड़ी से आना चाहते थे। लेकिन उन्हें अश्वक्षमता वाली कार से समारोह स्थल आना पड़ा। चार अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश जो तब मध्य प्रांत था के खंडवा में पैदा हुए किशोर मायानगरी मुंबई में बस गए। लेकिन उनका मन आखिरी सांस तक खंडवा की ठेठ कस्बाई संस्कृति में रमा रहा। वह अपने आखिरी दिनों में अक्सर कहा करते थे, दूध-जलेबी खाएंगे, खंडवा में बस जाएंगे। लेकिन 13 अक्तूबर 1987 को किशोर के निधन के साथ उनकी इस ख्वाहिश ने भी दम तोड़ दिया। उनकी इच्छा के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार उनके गृहनगर खंडवा में ही किया गया।
मशहूर फिल्म समीक्षक श्रीराम ताम्रकर ने बताया, यह वर्ष 1985-86 का वाकया है। किशोर की इच्छा थी कि उन्हें शहर के हवाई अड्डे से समारोह स्थल तक बैलगाड़ी की सवारी से लाया जाए, जहां उन्हें मध्यप्रदेश सरकार का प्रतिष्ठित राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान दिया जाना था। लेकिन ऐसा हो न सका। उन्होंने बताया कि तत्कालीन प्रशासन ने सुरक्षा कारणों के चलते किशोर को बैलगाड़ी की सवारी कराने में असमर्थता जताई। दूसरे, कुछ अधिकारियों को डर था कि बॉलीवुड की मशहूर हस्ती की एक झलक पाने के लिए उमड़ने वाली भीड़ के बेकाबू होने पर बैल बिदक भी सकते थे। बहरहाल, किशोर तो किशोर थे। उन्होंने बैलगाड़ी से समारोह स्थल तक न आने की टीस मंच पर अपने चुटीले अंदाज में बयान भी की। समारोह में बतौर दर्शक शामिल ताम्रकर के मुताबिक, किशोर ने मंच से कहा कि वह पुरस्कार लेने के लिए बैलक्षमता वाली गाड़ी से आना चाहते थे। लेकिन उन्हें अश्वक्षमता वाली कार से समारोह स्थल आना पड़ा। चार अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश जो तब मध्य प्रांत था के खंडवा में पैदा हुए किशोर मायानगरी मुंबई में बस गए। लेकिन उनका मन आखिरी सांस तक खंडवा की ठेठ कस्बाई संस्कृति में रमा रहा। वह अपने आखिरी दिनों में अक्सर कहा करते थे, दूध-जलेबी खाएंगे, खंडवा में बस जाएंगे। लेकिन 13 अक्तूबर 1987 को किशोर के निधन के साथ उनकी इस ख्वाहिश ने भी दम तोड़ दिया। उनकी इच्छा के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार उनके गृहनगर खंडवा में ही किया गया।