सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

इकोनॉमिकली वीकर स्टूडेंट्स के लिए अवसर

एसओएएस यानी स्कूल ऑफ ओरिएंटल ऐंड अफ्रीकन स्टडीज लंदन यूनिवर्सिटी से संबद्ध एक प्रतिष्ठित कॉलेज है। यह लंदन का एकमात्र ऐसा शिक्षा संस्थान है जहां एशिया, अफ्रीका और मध्य-पूर्व देशों से जुडे विषयों के बारे में स्पेशलाइज्ड स्टडी की जा सकती है। दरअसल, यहां पढाए जाने वाले विषयों में उक्त देशों से जुडे मुद्दों के साथ-साथ अन्य समकालीन मुद्दों का भी विस्तार से अध्ययन किया जाता है, मसलन- डेमोक्रेसी, ह्यूमन राइट्स, लीगल सिस्टम, सोशल चेंज, पॉवर्टी आदि। स्पेशलाइज्ड स्टडी के अलावा, एसओएएस हायर एजुकेशन के लिए भी दुनिया भर में जाना जाता है। बहरहाल, यदि आप हायर एजुकेशन के लिए एसओ एएस में एडमिशन लेना चाहते हैं, पर आर्थिक कारणों से किसी विदेशी संस्थान में पढने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं, तो चिंता न करें क्यों िआप फेलिक्स स्कॉलरशिप के लिए आवेदन करके आप अपना उद्देश्य पूरा कर सकते हैं। दरअसल, सॉस द्वारा संचालित इस स्कॉलरशिप प्रोग्राम के जरिए कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि वाले छात्रों को पर्याप्त वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है, जिससे कि वे भी एसओएएस के वर्ल्ड-फेमस स्टडी प्रोग्राम का लाभ उठा सकें।
क्या है फेलिक्स स्कॉलरशिप?
फेलिक्स स्कॉलरशिप पीजी और रिसर्च (एमफिल और पीएचडी) दोनों कोर्सो के लिए दी जाती है। इस स्कॉलरशिप प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य है-ऐसे स्टूडेंट्स को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना, जो अपनी कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के कारण सॉस के स्टडी-प्रोग्राम का लाभ नहीं उठा सकते हैं। पोस्ट ग्रेजुएट स्टडी प्रोग्राम अगर आप पीजी स्टडी के लिए सॉस में दाखिला लेना चाहते हैं, तो यहां उपलब्ध अस्सी से ज्यादा पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम में दाखिला ले सकते हैं। इनके तहत आप सोशल साइंस, ह्यूमिनिटी और लैंग्वेज से जुडे विषयों की पढाई भी कर सकते हैं।
रिसर्च प्रोग्राम
यहां पीएचडी तीन वर्षीय स्टडी प्रोग्राम है, जबकि एमफिल की कुल अवधि दो वर्ष ही रखी गई है। यहां स्टूडेंट्स निम्नलिखित विषयों में रिसर्च कर सकते हैं :
आर्ट ऐंड आर्कियोलॉजी
इकोनॉमिक्स
हिस्ट्री
एंथ्रोपोलॉजी
डेवलॅपमेंटल स्टडीज
मीडिया ऐंड फिल्म
साउथ एशिया
स्टडी ऑफ रिलीजन आदि।
एबिलिटी
कैंडिडेट की उम्र सीमा तीस से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
फेलिक्स स्कॉलरशिप में आवेदन करने के लिए जरूरी है कि आवेदक ने भारतीय यूनिवर्सिटी से डिग्री ली हो। इसका मतलब यह है कि जिन स्टूडेंट्स ने किसी अन्य देश से पढाई की है, वे फेलिक्स स्कॉलरशिप का लाभ नहीं उठा सकते।
स्कॉलरशिप के बेनिफिट्स
एसओएएस फेलिक्स स्कॉलरशिप के माध्यम से स्टूडेंट की पढाई और उनके रहने का समुचित प्रबंध करती है। इस स्कॉलरशिप के लिए चयनित कैंडिडेट्स को लंदन में रहने, पढने और अन्य जरूरी सुविधाओं के लिए एक वर्ष में कुल 10, 980 यूरो (यूरोपीय मुद्रा) की सहायता राशि उपलब्ध कराई जाती है।

डिजाइनिंग का कमाल कार बनाएं बेमिसाल

टाटा की कॉम्पैक्ट लखटकिया कार नैनो ने अपनी कीमत, लुक और माइलेज से ऑटो वर्ल्ड में तहलका मचा दिया है। सबकी जुबान पर यही सवाल रहा कि आखिर केवल एक लाख रुपये में कार कैसे बनाई जा सकती है? लेकिन जब पिछले दिनों दिल्ली में हुए एक ऑटो-एक्स्पो में इस कार का दीदार हुआ, तो लोग इसे देखकर दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो गए। आम आदमी की जेब को ध्यान में रखकर बनाई गई इस मुश्किल कार को हकीकत में बदला है 35 वर्षीय इंजीनियर गिरीश वाग और उनकी टीम ने। स्टाइलिश नैनो के प्रति दीवानगी केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के अन्य देशों में भी दिख रही है। नैनो से छोटी कारों के बाजार में मची हलचल के कारण टाटा के अलावा अन्य ऑटो कंपनियां भी इस तरह का कार लाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। भारत में आम और मध्यमवर्गीय लोगों के विशाल बाजार को देखते हुए कार कंपनियों में नए-नए मॉडलों और डिजाइनों से उन्हें आकर्षित करने की होड मच गई है। इसके लिए उन्हें उम्दा प्रोटोटाइप मॉडलों की तलाश भी है, जिसे क्रिएटिव ऑटो इंजीनियर ही अंजाम दे सकते हैं। हालांकि हकीकत यह है कि ऑटोमोबाइल कंपनियों के पास इस समय ऐसे ऑटो इंजीनियरों की भारी कमी है। इसलिए यदि आपकी दिलचस्पी इस क्षेत्र में है और आप अपने क्रिएटिव वर्क से दुनिया में नाम कमाना चाहते हैं, तो ऑटो इंजीनियरिंग कोर्स करके इस क्षेत्र में कदम रख सकते हैं। भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में ऑटोमोबाइल कंपनियों में बढती प्रतिस्पर्धा को देखते हुए इस सेक्टर में आकर्षक जॉब की भरपूर संभावनाएं हैं। इस बात की पुष्टि नैस्कॉम-बूज एलेन हैमिल्टन की रिपोर्टसे भी होती है, जिसके मुताबिक इंजीनियरिंग सर्विस का ग्लोबल आउटसोर्सिग मार्केट करीब 10-15 अरब डॉलर का है, जिसके वर्ष 2020 तक बढकर 150-225 अरब डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। इस ग्लोबल मार्केट में भारत का योगदान लगभग 25-30 प्रतिशत होगा। इससे वर्ष 2020 तक करीब 2.5 लाख ऑटो डिजाइन इंजीनियर्स को नियुक्तियां मिलेंगी।

रविवार, 24 फ़रवरी 2008


हाय रामा, क्या है ड्रामा

मुख्य कलाकार : राजपाल यादव, नेहा धूपिया, आशीष चौधरी, अमृता अरोड़ा, अनुपम खेर और रति अग्निहोत्री।
निर्देशक : चंद्रकांत सिंह
तकनीकी टीम : निर्माता- रंजन प्रकाश और सुरेन्द्र भाटिया, संगीत - सिद्धार्थ सुहास, गीत- कुमार
लगता है इस फिल्म की सारी क्रिएटिविटी शीर्षक गीत में ही खप गई है। अदनान सामी के गाए गीत में शब्दों से अच्छा खेला गया है। सुनने में भी अच्छा लगता है। इस गीत के चित्रांकन में फिल्म के सारे कलाकार दिखे हैं, लेकिन शुरू के क्रेडिट के समय ही यह गाना खत्म हो जाता है। उसके बाद फिल्म आरंभ होती है, तो फिर उसके खत्म होने का इंतजार शुरू हो जाता है।
रामा रामा क्या है ड्रामा में निर्देशक एस चंद्रकांत ने कामेडी क्रिएट करने की असफल कोशिश की है। अमूमन स्फुट विचार को लेकर बनाई गई फिल्मों का यही हश्र होता है। अधूरी कहानी और आधे-अधूरे किरदारों को लेकर फिल्म पूरी कर दी जाती है। इस फिल्म में निर्देशक एक संदेश देना चाहते हैं कि बीवी का जिंदगी में खास महत्व होता है और सफल दांपत्य के लिए पति-पत्नी को थोड़ा बहुत एडजस्ट करना चाहिए।
फिल्म का सारा भार राजपाल यादव के कंधों पर है और उनके कंधे इस फिल्म को ढो नहीं पाते। बाकी कलाकारों का उन्हें लापरवाह सहयोग मिला है। हां, फिल्म में अंग्रेजी के गलत शब्दों का इस्तेमाल करते हुए मिसरा जी (संजय मिश्रा) आते हैं तो राजपाल यादव के साथ उनकी जोड़ी जमती है। अनुपम खेर, नेहा धूपिया, अमृता अरोड़ा और आशीष चौधरी अधपके किरदारों को अपने अभिनय से और भी कच्चा कर देते हैं।
रामा रामा क्या है ड्रामा कामेडी की विधा में कमजोर कोशिश है और फिर कहानी का निर्वाह पुरुषों के दृष्टिकोण से किया गया है, जिसमें बीवी को ही तमाम परीक्षाओं से गुजर कर पूर्ण साबित होना है। पुरुष किरदारों की कमियों के लिए उन्हें ही कसूरवार समझा गया है। आखिरकार जब वे घरेलू औरत और सेविका की भूमिका के लिए तैयार हो जाती हैं तो फिल्म खत्म हो जाती है।

शीतलहर का शिकार हुआ फिल्म ट्रेड

शहरी और अंग्रेजी समीक्षकों ने मिथ्या की बहुत तारीफ की। इसके बावजूद रजत कपूर की फिल्म के दर्शक नहीं बढ़े। मिथ्या बिल्कुल शहरी मिजाज की फिल्म है। यह हिंदी फिल्मों का अर्बन एक्सप्रेशन है। यही कारण है कि इन्हें शहरी और अंग्रेजी समीक्षकों की तारीफ मिलती है। सूक्ष्म स्तर पर यह कोशिश चल रही है कि हिंदी फिल्मों की जातीय परंपरा को न अपना कर विदेशों में प्रेरित और प्रभावित शैली अपनायी जाए। मिथ्या जैसी फिल्में ऐसी ही कोशिशों का नतीजा हैं। मिथ्या की असफलता बताती है कि दर्शक अभी ऐसी फिल्मों के लिए तैयार नहीं हैं। सुपर स्टार को मिथ्या से ज्यादा दर्शक अवश्य मिले, लेकिन उनका प्रतिशत भी उल्लेखनीय नहीं रहा। मिथ्या को दस प्रतिशत दर्शक मिले तो सुपर स्टार को बीस प्रतिशत।
मुंबई समेत देश भर में चल रही शीतलहर का असर फिल्म ट्रेड पर भी पड़ा है। लोग घरों से निकलने में सिहर उठते हैं और रजाइयों में दुबक कर घर की गर्मी में डीवीडी पर फिल्में देखना या टीवी देखना पसंद करते हैं। उन्हें सिनेमाघरों में ऐसी फिल्में भी तो नहीं मिल रही हैं कि दर्शक थोड़ा जोखिम उठाएं। बसंत पंचमी के बाद ठंड में कमी आई है। उसका फायदा इस शुक्रवार को रिलीज हो रही जोधा अकबर को मिल सकता है। यह इस साल की सबसे महंगी और दो बड़े स्टारों और एक स्टार निर्देशक की फिल्म है।