हाथों में बस्ता लेकर पढ़ने के लिए स्कूल जाने की उम्र में उसे नाजुक कंधों पर थाल व हाथ में झाबा लेकर स्कूलों के सामने भेलपुरी बेचना पड़ रहा है। खेलों से उसका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है, क्योंकि उसे पता है कि यदि वह खेलों में रुचि लेने लगा, तो जिंदगी के खेल में उसे हार का सामना करना पड़ सकता है।
दस साल का यह बच्चा है लक्ष्मण, जो अपने परिवार की रोजी-रोटी व दो बड़ी बहनों की शादी के लिए रुपये जुटा रहा है। गरीबी से जंग जीतने की कोशिश में उसका बचपन दम तोड़ चुका है।
मूलरूप से नेपाल व मौजूदा समय में नई आबादी निवासी लक्ष्मण के नौ भाई-बहन हैं, जिनमें से चार बहनें और पांच भाई है। उसके पिता पल्लेदारी का काम करते हैं। स्कूलों के सामने भेलपुरी बेचने वाले लक्ष्मण ने बताया कि उसके चार भाई छोटे हैं तथा एक उससे बड़ा है। वह भी इसी तरह मजदूरी करता है। उसकी दो बहनों की शादी तो हो गई, लेकिन दो अन्य बहनों की शादी अभी बाकी है। उनकी शादी के लिए ही वह भेलपुरी बेचकर रुपये इकट्ठा कर रहा है। लक्ष्मण ने बताया कि उसकी चाहत थी कि वह भी दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जाए, लेकिन गरीबी व मजबूरी ने उसकी यह चाहत पूरी नहीं होने दी। आज वह स्कूलों में तो जाता है, लेकिन पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि वहां के बच्चों को भेलपुरी बेचने।
लक्ष्मण ने बताया कि वैसे वह रोजाना 100 रुपये तक कमा लेता है, लेकिन वह किसी के लिए काम करता है, इसलिए उसे एक माह की तनख्वाह 600 रुपये मिलती है। उसने बताया कि वह गरीब होने के कारण अपना सामान नहीं खरीद सकता, इसलिए वह किसी के पास नौकरी करता है। उसे यह कार्य करते करीब छह माह हो गए हैं। शुरू में उसे यह काम मुश्किल भी लगता था, लेकिन अब वह इससे खुश है। हालांकि, बालश्रम कानून के तहत इस मासूम का इस तरह से कार्य करना उचित नहीं है और उसका सही स्थान विद्यालय ही है।
गुरुवार, 4 सितंबर 2008
दम तोड़ता बचपन
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4 टिप्पणियां:
देश में बहुत बच्चों के सामने यही स्थिति है।
गुड्डू भाई, बहुत सही बात कह रहे हो। अपने पहाड़ में तो ऐसे ना जाने कितने लक्ष्मण मिल जायेंगे।
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है।
गरीबी से जंग जीतने की कोशिश में उसका बचपन दम तोड़ चुका है।...
अच्छा लिखते हैं। सक्रियता बनाए रखें। शुभकामनाएं।
हिन्दी में लिखने की बधाई स्वागत निरंतरता की चाहत
समय निकल कर मेरे ब्लॉग पर भी पधारें
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